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प्रभाकर जी अनुभव

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प्रभाकरजी के अनुभवः हममें से अधिक्तर मनुष्य, जब हमारा मार्गदर्शन करने के लिए गुरु के साथ ध्यान करना शुरू करते हैं, तो हमारी अपेक्षाएँ कभी-कभी सूझबूझ (ज्ञानवान) के परे होते हैं। हमारा स्वभाव यह है कि जीवन में हमारे पास जो भी कष्ट या मुद्दों का सामना करना होता है, वे तुरंत गायब हो जाऐं। हम एक गुरु को कामधेनु (एक दिव्य देवी जो सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं) अथवा एक कल्पवृक्ष (एक दिव्य वृक्ष जो इच्छाओं को पूर्ण करता है) के रूप में अनुभव करते हैं। यह एक भ्रम है। ज्यादातर हम इस मन कि स्थिति में रहते हैं, जहां हम योग अभ्यास शुरू करते ही तत्काल संतुष्टि चाहते हैं। जब हम वांछित परिणाम नहीं देखते हैं तो हम इन प्रथाओं से दूर हो जाते हैं।

योग का कोई भी रूप, विशेषकर सुषुम्ना क्रिया योग हमारे चल रहे मुद्दों या समस्याओं को अलौकिक तरीकों से नहीं मिटाएगा। वे आंतरिक रूप से हमें शक्ति देते हैं, वह हमारे कर्मों का सामना करने और हमारे कर्मों के प्रभाव को कम करने की ताकत देते हैं। सुषुम्ना क्रिया योग हमें इन दुःख-भरे मोड़ों को अपनी परिश्रम से पार करने कि स्थिरता देती है और मानसिक शक्ति प्रदान करने में मदद करता है।
प्रभाकर जी कहते हैं, “जब मैं अलग-अलग तरह की समस्याओं और नुकसानों के भावांडर में सूखे पत्तों की तरह भिकर रहा था … तो गुरु मां ने मुझे दृढ़ता से पकड़ लिया और मुझे एक दिव्य सुकून प्रदान किया।” यह काफी सराहनीय है, कि प्रभाकर जी ने माताजी के मार्गदर्शन में अपनी आध्यात्मिक वृद्धि का एहसास किया था। स्वयं को जानना ही एक महान् अनुभूति है और यह केवल साधन और ज्ञान के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। “हमारा पहला जन्म तब होता है, जब हम इस शरीर के साथ पैदा होते हैं और दूसरा जन्म (वास्तविक जन्म) तब होता है, जब हम अपने गुरु को पाते हैं” – यह समझने के लिए हमें आध्यात्मिक रूप से जागरूक होने की आवश्यकता है।

सुषुम्ना क्रिया ध्यान का परिचय उनकी पत्नी हरि प्रिया जी ने दिया था। प्रभाकर जी ध्यान के पहले ही दिन, एक संपूर्ण प्रेम से भरे संगीत का और एक मा कि लोरी का अनुभव करने में सक्षम थे। प्रभाकर जी ने खुद से कहे कि, “जब मैंने पहली बार कई अन्य गुरुओं से मुलाकात की, तो मैंने उनसे जो भी चीज मांगी वो मैं नहीं माँगूँगा…मैं केवल खुद को आत्मसमर्पण कर रहा हूं” और जवाब में उन्हें ‘तथास्तु’ सुनाई दिया। उन्होंने २०१३ में सुषुम्ना क्रिया योग अभ्यास शुरू किया। उनका दिल दुख और अफसोस से भर गया था, क्योंकि उनका परिवार गंभीर नुकसानों से गुज़र रहा था और जिन्हें वशीभूत करने के लिए कड़ी मेहनत करने में लगे थे। जब माताजी ने उन्हें बताया कि उनके जन्म से तीन पीढ़ी पहले, उनके पूर्वजों ने ६ सदस्यों को जिंदा जला दिया था और अब उनका परिवार अब पिछली पीढ़ियों द्वारा किए गए दुष्कर्मों का परिणाम भुगत रहा है। यह सुनकर प्रभाकर जी चौंक गए। वे पूछे – “फिर क्यों मुझे इस तरह के असहनीय भारी नुकसान व्यक्तिगत स्तर पर भुगतना पड़ रहा है , अथवा तीव्र दुख का सामना करना पड़ रहा है माताजी ?!”। माताजी ने बडी सुन्दरता से उत्तर दिया “जबकि हर कोई इस धरती पर कर्मों का बोझ लेकर आता है जिसे वे एक जन्म में संभाल सकते हैं, आपने तीन जन्मों के बराबर कर्मों को झेलने और जलाने के लिए चुना था – लेकिन आप इस जिम्मेदारी को इस जन्म में ही पूरा करेंगे ” । यह कहकर माताजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
कुछ समय बाद एक दिन माताजी ने उनसे कहा, “३ घंटे रोज ध्यान करें”। “सिर्फ १ घंटे का ध्यान ही इतना कठिन है, मैं यह कैसे करूंगा?” प्रभाकरजी को चिंता हुई। लेकिन अपने दृढ़ निश्चय और माताजी के आशीर्वाद से उन्होंने इसे १४ महीने तक सफलतापूर्वक किया। लेकिन कोई भी बदलाव नहीं हुआ, सब कुछ वैसा ही रहा जैसा पहले था। नुकसान अभी भी थे, परेशानी अभी भी स्पष्ट दिख रहे थे, उन्होंने अपनी महंगी कार को आग की लपटों में घिरते देखा। आखिर उन्होंने सुषुम्ना क्रिया योग से क्या हासिल किया ?!
इस प्रश्न के उत्तर में – आत्मा-दया न करके और बिना उत्साह कि कमी के, निराश हुए बिना, अथवा ‘मैं और मेरा’ कहने के बजाय – सुषुम्ना क्रिया योग ने उन्हें निरीक्षण करने की क्षमता और सब कुछ बाहर से साक्षात रूप में देखने केलिए मार्ग दिखाया। इसके बारे में दुखी होने के बजाय, प्रभाकरजी ने स्थिति के बारे में बहुत ही सकारात्मक दृष्टिकोण रखा और कहा, इन नुकसानों, कठिनाइयों और दुखों का अनुभव करना मेरा निर्णय है, मैं इनका सहन करूंगा जब तक वे खत्म न हो जाए … “मेरे पास माताजी कि कृपा है।” यह परिपक्वता का स्तर है जो उन्होंने अपने ध्यान के साथ प्राप्त किया।

प्रभाकर जी के उपरोक्त अनुभव से, हम सुषुम्ना क्रिया योगियों को यह समझने कि आवश्यकता है कि, जब हम अपने जीवन में कठिन दौर से गुज़रते हैं, तो अपने गुरु की मदद से हमें इसका सामना करने और आगे बढ़ने की मानसिक शक्ति मिलती है। लेकिन प्रभाकरजी का अनुभव इस बात का एक जीवंत उदाहरण है कि कैसे अपने कठिन समय को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें और अपनी आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ें। हमें यह समझने की भी जरूरत है कि हमारे गुरु हमारे पिछले कर्मों को खत्म करने के लिए हमारे साथ हमारे पथ पर चलते हैं, लेकिन वे पूरी तरह से उन्से छुटकारा दिला नहीं सकते हैं।

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